Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 114
________________ की प्राप्ति नहीं होगी। जैसे अहमिन्द्र देवों में नरकादि में गमन करने की शक्ति है परन्तु उस शक्ति की अभिव्यक्ति नहीं है, वैसे दूरानुदूर भव्यों की शक्ति की अभिव्यक्ति नहीं होती है। २१४. प्रश्न : अभव्य किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस जीव में रत्नत्रय-प्राप्ति की योग्यता न हो, उसे अभव्य कहते हैं। जैसे-बन्ध्या स्त्री को निमित्त मिले चाहे न मिले परन्तु पुत्रोत्पत्ति नहीं होगी वैसे अभव्य जीवों को कभी मोक्षफल की प्राप्ति नहीं होगी। २१५. प्रश्न : भव्यत्व मार्गणा का गुणस्थानों में किस प्रकार का विभाग है ? उत्तर : अभव्य जीव सदा प्रथम गुणस्थान में रहते हैं। भव्य जीव प्रथम से चौदहवें गुणस्थान पर्यन्त होते हैं। सिद्ध परमेष्ठी भव्यत्व और अभव्यत्व के व्यवहार से रहित होते हैं। २१६. प्रश्न : भव्य-अभव्य जीवों का कितना प्रमाण है ? उत्तर : जघन्य युक्तानन्तग्रमाण अभव्य जीवों का प्रमाण है और सम्पूर्ण संसारी जीवराशि में से अभव्य जीवों का प्रमाण घटाने पर, जो शेष रहे उतना भव्य जीवों का प्रमाण है। (१०६)

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