Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 120
________________ २२६. प्रश्न : स्थितिस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : बन्ध रूप कम की जघन्यादि स्थिति को स्थितिस्थान कहते हैं। २२७. प्रश्न : माय परिवर्तन किसे कहते हैं ? उत्तर : श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण योगस्थानों के हो जाने पर एक अनुभागबन्ध अध्यवसायस्थान होता है। असंख्यात लोक प्रमाण अनुभागबन्ध अध्यवसायस्थानों के हो जाने पर एक स्थितिबन्ध अध्यवसायस्थान होता है। असंख्यात लोकप्रमाण स्थितिबन्ध अध्यवसायस्थानों के हो जाने पर एक स्थितिस्थान होता है। इस क्रम से ज्ञानावरण आदि समस्त मूल प्रकृतियों व उत्तर प्रकृतियों के समस्त स्थानों के पूर्ण होने पर एक भाव परिवर्तन होता है। किसी पर्याप्त संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव के ज्ञानावरण कर्म की अन्तकोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण जघन्य स्थिति का बन्ध होता है। यही यहाँ पर जघन्य स्थिति है, अतः इसके योग्य विवक्षित जीव के जघन्य ही अनुभागबन्ध अध्यवसायस्थान, जघन्य ही कषाय अध्यवसायस्थान और जघन्य ही योग स्थान होते हैं। यहाँ से भाव-परिवर्तन का (११५)

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