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२२८. प्रश्न : छह द्रव्यों में क्या-क्या लक्षण हैं ? उत्तर : जिसमें ज्ञान-दर्शन रूप उपयोग पाया जाय उसे जीव द्रव्य
कहते हैं। जिसमें वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श गुण पाया जाय उसे पुद्गल द्रव्य कहते हैं। जो स्वयं गमन करते हुए जीव और पुद्गल द्रव्य को गमन करने में उदासीन रूप से सहकारी कारण हो उसे पर्म द्रव्य कहते हैं, जैसे पथिक को मार्ग। जो स्वयं ठहरे हुए जीव और पुद्गल द्रव्य को ठहरने में उदासीन रूप से सहकारी कारण हो उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं, जैसे ठहरने वाले को आसन । जो सम्पूर्ण द्रव्यों को स्थान देने में सहायक हो उसे आकाश द्रव्य कहते हैं, जैसे निवास करने वालों को मकान । जो समस्त द्रव्यों को अपने-अपने स्वभाव में वर्तने का सहकारी कारण हो उसे काल द्रव्य कहते हैं अर्थात द्रव्यों को बताने वाला सहकारी कारण रूप वर्तना गुण जिसमें पाया जाय उसे काल द्रव्य
कहते है। २२६. प्रश्न : सभी द्रव्यों में वर्तना का कारण काल द्रव्य कैसे
घटित होता है ? उत्तर : परिणामी होने से कालद्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणत हो
जाय, ऐसी बात नहीं है, वह न तो स्वयं दूसरे द्रव्य रूप परिणत होता है और न दूसरे द्रव्यों को अपने स्वरूप
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