Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 124
________________ २३३. प्रश्न : व्यंजन पर्याय और अर्थ पर्याय किसे कहते हैं ? इनके कितने भेद हैं? उत्तर : वचन की विषयभूत स्थूल पर्यायों को व्यंजन पर्याय कहते हैं अथवा त्रिकाल सम्बन्धी संस्थान रूप प्रदेशवत्त्व गुण की पर्याय व्यंजन पर्याय है। वचन अगोचर सूक्ष्म पर्यायों को अर्धपर्याय कहते हैं अथवा प्रदेशवत्त्व गुण को छोड़कर शेष गणों की त्रिकाल सम्बन्धी समस्त पर्याय अर्थपर्याय है। इन दोनों के दो-दो भेद हैं। (१) स्वभावव्यंजनपर्याय बिना दूसरे निमित्त के जो व्यंजन पर्याय हो-जैसे जीव की सिद्ध पर्याय। और (२) दूसरे निमित्त से जो व्यंजन पर्याय हो, उसे विभावव्यंजनपर्याय कहते हैं। जैसे जीव की नरनारकादि पर्याय। (१) बिना दूसरे निमित्त के जो अर्थपर्याय हो, उसे स्वभाव अर्यपर्याय कहते हैं जैसे जीव का केवलज्ञान और (२) पर-निमित्त से जो अर्थपर्याय हो, उसे विभाव अर्धपर्याय कहते हैं- जैसे जीव के रागद्वेषादिक । २३४. प्रश्न : छह द्रव्यों की कितनी-कितनी संख्या है ? उत्तर : जीव द्रव्य अनन्त हैं, उनसे अनन्तगुणे पुद्गल द्रव्य हैं, धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य अखण्ड तथा एक-एक हैं। लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतनी संख्या प्रमाण (असंख्यात) कालद्रव्य हैं। (११६)

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