Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 126
________________ वर्गणा (१४) ध्रुव वर्गणा (१५) सान्तर-निरन्तर वर्गणा (१६) शून्य वर्गणा (१७) प्रत्येक शरीर वर्गणा (१८) ध्रुव शून्य वर्गणा (१६) बादर निगोद वर्गणा (२०) शून्य वर्गणा (२१) सूक्ष्मनिगोद वर्गणा (२२) नभो वर्गणा और २३) महास्कन्ध वर्गणा । इन तेईस वर्गणाओं में से आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा ये पाँच ग्राह्य वर्गणायें हैं। २३७. प्रश्न : पाँच प्रकार की प्राध वर्गगाओ क्या-क्या रचना होती है? उत्तर : आहारवर्गणा के द्वारा औदारिक-वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीरों की और श्वासोच्छ्वास की रचना होती है। तैजसवर्गणा के द्वारा तैजस शरीर की, माषायर्गणा के द्वारा चार प्रकार के वचनों की और मनोवर्गणा के द्वारा हृदय स्थान में अष्ट दल कमल के आकार द्रव्य मन की रचना होती है। कार्मण वर्गणा के द्वारा आठ प्रकार के कर्म बनते हैं। २३८. प्रश्न : प्रकारान्तर से पुद्गल द्रव्य के कितने भेद हैं ? उनका स्वरूप क्या है ? उत्तर : पुद्गल द्रव्य के छह भेद हैं- (9) जिसका छेदन-भेदन एवं अन्यत्र प्रापण हो सके, उस स्कन्ध को बादर-बादर कहते (१२५)

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