Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 123
________________ अथवा भिन्न द्रव्य स्वरूप परिणमाता है, किन्तु अपने-अपने स्वभाव से ही अपने-अपने योग्य पर्यायों से परिणत होने वाले द्रव्यों के परिणमन में कालद्रव्य उदासीनता से स्वयं बाह्य सहकारी कारण हो जाता है। सूक्ष्म अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेद युक्त अगुरुलघु गुण के द्वारा धर्मादिक द्रव्य षड्गुण हानि-वृद्धि रूप परिणमन करते हैं। २३०. प्रश्न : समर किसे कहते हैं ? उत्तर : आकाश के एक प्रदेश पर स्थित एक परमाणु मन्दगति के द्वारा गमन करके दूसरे अनन्तर प्रदेश पर जितने काल में पहुँच जाय, उतने काल को एक समय कहते हैं। सम्पूर्ण द्रव्यों की पर्याय की जघन्य स्थिति एक क्षणमात्र होती है, इसी को भी समय कहते हैं। २३१. प्रश्न : प्रदेश किसे कहते हैं ? उत्तर : पुद्गल का एक अविभागी परमाणु लोकाकाश के जितने क्षेत्र में आ जाय, उतने क्षेत्र को प्रदेश कहते हैं। २३२. प्रश्न : जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त किसे कहते हैं ? उत्तर : एक समय सहित आवली प्रमाण काल को जघन्य अन्तर्मुहूर्त कहते हैं और एक समय कम मुहूर्त को उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। (११८)

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