Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

Previous | Next

Page 119
________________ उतने काल को एक भव-परिवर्तन का काल कहते हैं तथा इतने काल में जितना भ्रमण किया जाय उसे भव परिवर्तन कहते हैं। इन परिवर्तनों का निरूपण मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से है क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव संसार में अर्धपदगल परिवर्तन प्रमाण काल से अधिक काल तक नहीं रहते हैं। २२२. प्रश्न : भाव परिवर्तन किसके निमित्त से होता है ? उत्तर : योगस्थान, अनुभागबन्ध अध्यवसाय-स्थान, कषाय अध्यक्सायस्थान अथवा स्थितिबन्ध अध्यवसायस्थान और स्थितिस्थान के निमित्त से भाव परिवर्तन होता है। २२३. प्रश्न : योगस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रकृति और प्रदेश बन्ध के कारणभूत आत्मा के प्रदेश-परिस्पन्दन रूप योग के तरतमरूप स्थानों को योगस्थान कहते हैं। २२४. प्रश्न : अनुभागबन्ध अध्यवसाय स्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : जिन कषायों के तरतम रूप स्थानों से अनुभागबन्ध होता है, उनको अनुभागबन्ध अध्यवसायस्थान कहते हैं। २२५. प्रश्न : स्थिति-बन्ध अध्यवसायस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : स्थितिबन्ध के कारणभूत कषाय-परिणार्मों को स्थितिबन्ध अध्यवसायस्थान कहते हैं। (११४)

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149