Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 117
________________ की उत्कृष्ट अवगाहना पर्यन्त अवगाहनाओं को जितने समय में धारण कर सके उतने कालसमुदाय को एक स्वक्षेत्र परिवर्तन कहते हैं। परक्षेत्र परिवर्तन : कोई जघन्य अवगाहना का धारक सूक्ष्म निगोदिया लब्यपर्याप्तक जीव सुदर्शन मेरु के नीचे अचल रूप से स्थित लोक के अष्ट मध्य प्रदेशों को अपने शरीर के बनाकर उत्पन्न हुआ, पीछे वही जीव उसी रूप से उसी स्थान में दूसरी-तीसरी बार उत्पन्न हुआ। इसी तरह घनांगल के असंख्यातवें भाग प्रमाण जघन्य अवगाहना के जितने प्रदेश हैं उतनी बार उसी स्थान पर क्रम से उत्पन्न हुआ और श्वास के अठारहवें भाग प्रमाण क्षुद्र आयु को भोग-भोगकर मरण को प्राप्त हुआ। पीछे एक-एक प्रदेश के अधिक क्रम से जितने काल में सम्पूर्ण लोक को अपना जन्मक्षेत्र बना ले उतने कालसमुदाय को एक परक्षेत्र-परिवर्तन कहते हैं। २२०. प्रश्न : काल परिवर्तन किसे कहते हैं ? उत्तर : कोई जीव उत्सर्पिणी के प्रथम समय में पहली बार उत्पन्न हुआ, इसी तरह दूसरी बार दूसरी उत्सर्पिणी के दूसरे समय में उत्पन्न हुआ, इसी क्रम से उत्सर्पिणी तथ अवसर्पिणी के बीस कोड़ाकोड़ी सागर के जितने समय हैं उनमें क्रमशः उत्पन्न हुआ तथा इसी क्रम से मरण को (११२)

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