Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

Previous | Next

Page 116
________________ कर्मद्रव्य परिवर्तन : किसी जीव ने स्निग्ध, रूक्ष, वर्ण एवं गन्धादि के तीव्र-मन्द-मध्यम भावों में से यथासम्भव भावों से युक्त आठ कर्मों के योग्य कर्म-पुद्गलद्रव्य का समयप्रबद्ध रूप में एक समय में ग्रहण किया। पश्चात् एक आवली काल के अनन्तर गृहीत कर्मद्रव्य की निर्जरा का प्रारंभ हुआ। पीछे अनन्त बार अगृहीत पुद्गलों को ग्रहण कर छोड़ दिया, अनन्त बार मिश्रद्रव्य को ग्रहण कर छोड़ दिया, अनन्त ज़ार गृहीत को भी ग्रहण कर छोड़ दिया ! जब वही जीव उन्हीं स्निग्ध रूक्षादि भावों से युक्त उन्हीं पुद्गलों को जितने समय बाद ग्रहण करे, प्रारंभ से लेकर उतने काल समुदाय को कर्मद्रव्य परिवर्तन कहते हैं। नोकर्मद्रव्य परिवर्तन और कर्मद्रव्य परिवर्तन के समूह को द्रव्य परिवर्तन कहते हैं। २१६. प्रश्न : क्षेत्र परिवर्तन के कितने भेद हैं और उनका क्या स्वरूप है ? उत्तर : क्षेत्र परिवर्तन के दो भेद हैं- (१) स्व-क्षेत्र परिवर्तन और (२) परक्षेत्र परिवर्तन । स्वक्षेत्र परिवर्तन : एक जीव सर्व जघन्य अवगाहना के प्रदेश प्रमाण बार जघन्य अवगाहना को धारण कर पश्चात् क्रमशः एक-एक प्रदेश अधिकअधिक की अवगाहनाओं को धारण करते-करते महामत्स्य (१११)

Loading...

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149