Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 113
________________ लेश्या का सद्भव माना जाता है। चौदहवें गुणस्थान में योगप्रवृत्ति नहीं होने से लेश्या का अभाव माना जाता है। २१२. प्रश्न : भव्य किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस जीव में रत्नत्रय - प्राप्ति की योग्यता हो उसे भव्य कहते हैं । २१३. प्रश्न: भव्य के कितने भेद हैं ? उत्तर : भव्य के तीन भेद हैं- (१) निकट-भव्य, (२) दूरभव्य और (२) दूरादुरभन्दा की साज- अष्ट भव में मोक्ष प्राप्त करने वाला हो, उसे निकटभव्य कहते हैं। जो अर्धपुद्गल परावर्तन प्रमाण काल के भीतर मोक्ष प्राप्त करने वाला हो उसे दूरभव्य कहते हैं। जैसे बन्ध्यापने के दोष से रहित स्त्री के बाह्य निमित्त मिलने पर नियम से पुत्रोत्पत्ति होगी, वैसे इन जीवों को नियम से मोक्षफल की प्राप्ति होगी। जो भव्य होने पर भी कभी मोक्ष प्राप्त न कर सके उसे दूरानुदूरभव्य कहते हैं। ये जीव नित्यनिगोद में ही पाये जाते हैं। जैसे बन्ध्यापने के दोष से रहित विधवा सती स्त्री में पुत्रोत्पत्ति की योग्यता है, परन्तु बाह्य निमित्त नहीं मिलने पर उसके कभी पुत्रोत्पत्ति नहीं होगी, वैसे ही नित्य निगोद में बाह्य सामग्री का अभाव होने से मोक्षफल (१०८)

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