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आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना वेदना समुद्घात। (२) कषायः क्रोधादि के वश आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना कषाय समुद्घात है। (३) वैक्रियिक : विक्रिया के द्वारा आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना वैक्रियिक समुद्घात है। (४) मारणान्तिक : मरण से पूर्व नवीन जन्म के योग्य क्षेत्र का स्पर्श करने हेतु आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना मारणान्तिक समुद्घात है। (५) तैजस : शुभ या अशुभ तैजस ऋद्धि के द्वारा तैजस शरीर के साथ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना तैजस समुद्धात है। (६) आहारक : ऋद्धिधारी प्रमत्त गुणस्थानवर्ती मुनिराजों के मस्तक से निकलने वाले आहारक शरीर के द्वारा आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना आहारक समुद्घात है। (७) केयली : आयुस्थिति के बराबर शेष तीन अघाती कमों की स्थिति करने के लिए केवली भगवान के दण्ड, कपाट, प्रतर एवं लोकपूरण क्रिया में आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना केवली समुद्धात है। आहारक और मारणान्तिक समुद्धात अवस्था में आत्मप्रदेशों का एक ही दिशा में गमन होता है किन्तु बाकी पाँच भेदों में दसों दिशाओं में गमन होता है।
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