Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

Previous | Next

Page 110
________________ में पीत आदि तीन शुभ लेश्याएँ और निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था में कापोत लेश्या का जघन्य अंश होता है। २०७. प्रश्न : तिर्यंचों में कौन-कौन सी भाव लेश्या होती है ? उत्तर : एकेन्द्रिय और विकलत्रय जीवों में कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्याएँ होती हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त तियचों में एवं संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्यात तिर्यचों में कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्याएँ होती हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यचों में कृष्ण आदि चार लेश्याएँ होती हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंचों में प्रथम से चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त छहों लेश्याएँ होती हैं और पंचम गुणस्थान में तीन शुभ लेश्याएँ होती हैं। भोगभूमिस्थ पर्याप्त तिर्यंचों में पीत आदि तीन शुभ लेश्याएँ एवं निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था में कापोत लेश्या का जघन्य अंश होता है। २०८, प्रश्न : समुद्घात किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं और उनका क्या स्वरूप है ? उत्तर : मूल शरीर को न छोड़ते हुए आत्मा के कुछ प्रदेशों के बाहर निकलने को समुद्घात कहते हैं। समुद्घात के ७ भेद हैं- (१) वेदना : पीड़ा- वेदना के निमित्त से (१०५)

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149