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प्रमाण है। विपुलमति मन:पर्ययज्ञान का जघन्य क्षेत्र आठ-नौ योजन तथा उत्कृष्ट क्षेत्र मनुष्यलोक' प्रमाण है । विपुलमति का जघन्य काल सात-आठ भव और उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। भाव की अपेक्षा विपुलमति का जघन्य विषय ऋजुमति के उत्कृष्ट विषय से असंख्यातगुणा है तथा उत्कृष्ट विषय असंख्यात लोक प्रमाण है।
१७३. प्रश्न: केवलज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : जो समस्त द्रव्य और उनकी समस्त पर्यायों को वर्तमान पर्याय की तरह स्पष्ट जाने उसे केवलज्ञान कहते हैं। केवलज्ञान ज्ञानगुण की सर्वोत्कृष्ट पर्याय है, इसके अविभागप्रतिच्छेद उत्कृष्ट अनन्तानन्त प्रमाण हैं |
१. यहाँ नरलोक - मनुष्यलोक से मनुष्यलोक का विष्कम्भ ग्रहण करना चाहिए न कि वृत्त, क्योंकि मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चारों कोणों में स्थित तिर्यंच और देवों के द्वारा चिन्तित पदार्थ को भी विपुलमति मन:पर्ययज्ञानी जानते हैं, कारण यह है कि मन:पर्ययज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र ऊँचाई में कम होते हुए भी समचतुरस्र धनप्रतररूप ४५ लाख योजन प्रमाण है। (गो.जी.गा. ४५६ ) । मानुषोत्तर शैल शब्द उपलक्षणभूत है, इसलिए ये ४५ लाख योजन के भीतर स्थित जीवों की चिन्ता के विषज्ञयभूत निकालगोचर पदार्थों के विषय को जानते हैं, ऐसा सिद्ध होता है। यवल १३/३४३-३४४, धवल ६ / ६८, जयघवल १/१७, १/१८, १/१६/
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