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गुणस्थानवती के, सात ऋदियों में से कम से कम किसी भी एक ऋद्धि धारण करने वाले के और ऋद्धिप्राप्त में भी वर्धमान तथा विशिष्ट चारित्रधारी मुनिराज के ही मनःपर्ययज्ञान पाया जा सकता है।
१७१. प्रश्न : ऋजुमति और विपुलमति मनःपर्ययज्ञान में क्या
विशेषता है ? उत्तर : विशुद्धता और प्रतिपात-अप्रतिपात की अपेक्षा दोनों में
विशेषता है। ऋजुमति की अपेक्षा विपुलमति मनःपर्ययज्ञान में अधिक विशुद्धता होती है तथा ऋजुमति प्रतिपाती है
और विपुलमति मनःपर्ययज्ञान अप्रतिपाती है। ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी दूसरे के मन में सरलता के साथ स्थित पदार्थ को पहले ईहा मतिज्ञान के द्वारा जानता है, पश्चात् प्रत्यक्ष रूप से नियम से ऋजमति मनःपर्ययज्ञान के द्वारा जानता है। विपुलमति मनःपर्ययज्ञानी चिन्तित, अचिन्तित, अर्धचिन्तित इस तरह अनेक भेदों को प्राप्त दूसरे के मनोगत पदार्थ को प्रत्यक्ष रूप से जानता है।
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