Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 101
________________ 1 विहार करने का या नहीं करने का कोई नियम नहीं है। १८३. प्रश्न: सूक्ष्मसाम्पराय संयम किसे कहते हैं ? उत्तर : उपशम श्रेणी वाले अथवा क्षपक श्रेणी वाले जीव के जहाँ संज्वलन लोभ का अत्यन्त सूक्ष्म उदय रहता है, उसके संयम को सूक्ष्मसाम्पराय संयम कहते हैं। इनके परिणाम यथाख्यात चारित्र वाले जीव के परिणामों से कुछ ही कम होते हैं। यह संयम दसवें गुणस्थान में होता है। १८४. प्रश्न : यथाख्यात संयम किसे कहते हैं ? उत्तर : समस्त मोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय हो जाने से जहाँ यथावस्थित आत्म स्वभाव की उपलब्धि हो जाती है, उसे यथाख्यात संयम कहते हैं। यह संयम ग्वारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म के उपशम से और ऊपर के तीन गुणस्थानों में मोहनीय कर्म के क्षय से होता है। १८५ प्रश्न : संयमासंयम किसे कहते हैं ? उत्तर : जहाँ अप्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम और प्रत्याख्यानावरण के उदय की तरतमता से एकदेशचारित्र होता है उसे संयमासंयम कहते हैं। इस संयम में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इन बारह व्रत (९६)

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