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१७२. प्रश्न : द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव की अपेक्षा दोनों भेदों में
क्या विशेषता है ?
उत्तर : ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान का जघन्य द्रव्य औदारिक शरीर
के निर्जीर्ण समयप्रबद्ध प्रमाण है तथा उत्कृष्ट द्रव्य चक्षुइन्द्रिय के निर्जरा द्रव्य प्रमाण है। ऋजुमति का जघन्य क्षेत्र दो-तीन कोस और उत्कृष्ट सात-आठ योजन है। ऋजुमति का जघन्य काल दो-तीन भव और उत्कृष्ट काल सात-आठ भव है। ऋजुमति का जघन्य और उत्कृष्ट भाव यद्यपि
आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण है, तो भी जघन्य से उत्कृष्ट का प्रमाण असंख्यातगुणा है। विपुलमति का जघन्य द्रव्य, ऋजुमति के उत्कृष्ट द्रव्य में धुवहार (मनोद्रव्यवर्गणा का अनन्तवाँ भाग) का भाग देने से जो लब्ध प्राप्त हो, उतना है। असंख्यात कल्पों के जितने समय हैं, उतनी बार विपुलमति मनःपर्ययज्ञान के द्वितीय द्रव्य में ध्रुवहार का भाग देने से जो लब्ध आवे उतना विपुलमति के उत्कृष्ट द्रव्य का
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