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क्षेत्र इससे संख्यात गुणा है। भवनत्रिक देवों के अवधि का क्षेत्र नीचे-नीचे कम होता है, और तिर्यग-रूप से अधिक होता है। भवनवासी देव अपने अवस्थित स्थान से मेरु के
शिखर पर्यन्त देखते हैं। सौधर्म-ऐशान स्वर्ग के देवों का नीचे की ओर अवपिज्ञान का क्षेत्र
प्रथम भूमिपर्यन्त सानत्कुमार-माहेन्द्र
द्वितीय " ब्रह्म-ब्राह्मोत्तर सांतव-कापिष्ट
तृतीय " शुक-महाशुक्र शतार-सहस्रार आनत-प्राणत आरण-अच्युत
पंचम " नव अवेयक-वासी
छठी " नव अनुदिश और पाँच
सम्पूर्ण लोकनाड़ी को अनुत्तरवासी
अवधि के द्वारा देखते है। १६८. प्रश्न : मनःपर्ययज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : जो इन्द्रियादिक बाह्य निमित्तों की सहायता के बिना ही
दूसरे के मन में स्थित चिन्तित (जिसका भूतकाल में चिन्तन किया हो), अचिन्तित (जिसका भविष्यत् काल में
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चतुर्थ "