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का भाव परमावधि के द्विचरम भेद के विषयभूत भाव से आवली के असंख्यातवें भाग गुणा है (विशेष के लिए देखा- धदना ,४१-५० गो.जी. ५ मे १२ एवं
थवला १३/३२२ से ३२५ ।) १६५. प्रश्न : सर्यावधि ज्ञान का द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की
अपेक्षा कितना विषय है ? उत्तर : सर्वावधि का द्रव्य एक परमाणु है।' परमावधि के उत्कृष्ट
क्षेत्र काल व भाव को असंख्यात से गुणा करने पर सर्वावधि का क्षेत्र, काल व भाव आता है। अर्थात् परमावधि के उत्कृष्ट क्षेत्र को उसके योग्य असंख्यात लोकों से गुणित करने पर सर्वावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र होता है। परमावधि के काल को उसके योग्य असंख्यात रूपों से गुणा करने पर सर्वावधि का उत्कृष्ट काल होता है।
१. नोट : इतना विशेष जानना चाहिए कि सर्वावधि का विषयभूत द्रव्य परमाणु नहीं है, किन्तु अनन्त परमाणुओं का स्कन्ध है, ऐसा भी अनेक आचार्य कहते हैं। (राजयार्तिक १/२४/२ पृ. ८६ एवं इसके टिप्पण ३ व ६ तथा श्लोक-वार्तिक भाग ४ पृ. ६६ व ६७१ श्री श्रुतसागर सूरि कृत तत्वार्थवृत्ति एवं आचार्य भास्करनन्दी की 'सुखबोध' टीका भी द्रष्टव्य है।) इस प्रकार सर्वावधिज्ञान के द्रव्य के विषय में दो उपदेश प्राप्त होते हैं, एक परमाणु रूप, दूसरा स्कन्ध रूप।
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