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परमावधि के उत्कृष्ट भाव को उसके योग्य असंख्यात रूपों से गुणित करने पर सर्वावधि का उत्कृष्ट भाव होता है। (विशेष के लिए धवला ६/४७ से ५१; गो.जी.
४१३-४२३ देखिये) १६६. प्रश्न : नरकगति, तिर्यचगति और मनुष्यगति के जीवों
का अवधिज्ञान के विषयक्षेत्र का प्रमाण कितना है ? उत्तर : सातवीं भूमि में नारकियों के अवधिज्ञान के विषयभूत क्षेत्र
का प्रमाण एक कोस है। इसके ऊपर प्रधम भूमि के नारकियों के अवधिक्षेत्र पर्यन्त क्रम से आधे-आधे कोस की वृद्धि होती गई है, इस प्रकार प्रथम नरक में नारकियों के अवधिज्ञान के विषयभूत क्षेत्र का प्रमाण पूर्ण एक योजन होता है। तिर्यचों का अवधिज्ञान जघन्य देशावधि से लेकर उत्कृष्टता की अपेक्षा तैजस शरीर को विषय करने वाले देशावधि के भेद पर्यन्त होता है। मनुष्य गति में मनुष्यों का अवधिज्ञान जघन्य देशावधि से लेकर
उत्कृष्टया सर्वावधि पर्यन्त होता है। १६७. प्रश्न : देवगति में अवधिज्ञान के विषयक्षेत्र का प्रमाण
कितना है ? उत्तर : भवनवासी और व्यन्तरों के अवधि के क्षेत्र का जघन्य
प्रमाण २५ योजन होता है। ज्योतिषी देवों के अवधि का
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