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(२) चतुर्विंशति स्तव, (३) वन्दना, (४) प्रतिक्रमण (५) वैनयिक (६) कृतिकर्म (७) दशवै कालिक, (८) उत्तराध्ययन, (६) कल्प व्यवहार, (१०) कल्पाकल्प्य, (११) महाकल्प, (१२) पुण्डरीक, (१३) महापुण्डरीक और
(१४) निषिद्धिका। १५४. प्रश्न : श्रुतज्ञान के अपुनरुक्त अक्षर कितने हैं ? उत्तर : मूल में २७ स्वर, ३३ व्यजन और ४ योगवाह (अनुस्वार,
विसर्ग जिामूलीय और उपध्मानीय) इस प्रकार ६४ मूलवर्ण हैं। इनके संयोगी भंग ६४ जगह दुआ मांडकर परस्पर गुणा करने से एक कम एकट्ठी प्रमाण अर्थात् १८४४६७४४०७३७०६५५१६१५ इतने अंगप्रविष्ट और
अंग-बाह्य श्रुत के समस्त अपुनरुक्त अक्षर हैं। १५५. प्रश्न : एक पद में कितने अक्षर होते हैं ? द्वादशांग के
समस्त पद कितने हैं ? उत्तर : एक पद में सोलह सौ चौंतीस करोड़ तिरासी लाख सात
हजार आठ सौ अठासी अक्षर होते हैं- (१६३४,८३,७८८८) यह मध्यम पद के अक्षरों का प्रमाण है। द्वादशांग के समस्त पद एक सौ बारह करोड़ बयासी लाख अट्टावन हजार पाँच (११२,८२,५८,००५) है।
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