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भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक ये चार भेद हैं। भवनवासी और व्यन्तर देवों का निवास इस पृथिवी के नीचे स्थित रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग और पंक-माग में है एवं मध्यलोक में भी है। ज्योतिषी देवों का निवास इस पृथ्वी से ७६० योजन की ऊंचाई से लेकर ६०० योजन की ऊँचाई तक है। वैमानिक देवों का निवास सोलह स्वर्ग, नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश तथा पाँच अनुत्तर विमानों में है। सरल परिणाम, धर्मध्यान तथा शुभोपयोग रूप भावों से जीव देवगति में उत्पन्न होते हैं।
सिद्ध परमेष्ठी चारों गतियों के चक्र से रहित होते हैं। १८. प्रश्न : तिर्यंचों और मनुष्यों के कितने भेद हैं ? उत्तर : सामान्य तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच, पर्याप्त तिर्यंच, योनिनी
तिर्यंच और अपर्याप्त तिर्यच इस प्रकार तिर्यचों के पाँच भेद हैं। सामान्य मनुष्य, पर्याप्त मनुष्य, योनिनी मनुष्य
और अपर्याप्त मनुष्य इस प्रकार मनुष्यों के चार भेद हैं। ८६. प्रश्न : पर्याप्त मनुष्य और मानुषियों का कितना प्रमाण है ? उत्तर : ७६२२८१६२५१४२६४३३७५६३५४३८५०३३६ अर्थात्
२६ अक प्रमाण पर्याप्त मनुष्यों का प्रमाण है। पर्याप्त मनुष्यों का जितना प्रमाण है, उसमें ३/४ मानुषियों का प्रमाण है।
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