Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 79
________________ : गेहूँ आदि का ज्ञान । ( ४ ) अल्पविध: अनेक जाति के एक, दो पदार्थ को अल्पविध कहते हैं। जैसे- एक गेहूँ, चना, चावल आदि का ज्ञान। (५) क्षिप्र शीघ्र पदार्थ को क्षिप्र कहते हैं, जैसे- तेजी से बहता हुआ जलप्रवाह। (६) अक्षिप्र : मन्द गति से चलने वाले पदार्थ को अक्षिप कहते हैं। जैसे- कछुआ की चाल आदि। (७) अनिःसृत वस्तु के एकदेश को देखकर समस्त वस्तु के ज्ञान को अनिःसृत कहते हैं। जैसे जल में डूबे हुए हाथी की सूंड देखकर पूरे हाथी का ज्ञान होना । वस्तु के एकदेश या पूर्ण वस्तु का ग्रहण करके उसके निमित्त से किसी दूसरी वस्तु के ज्ञान को भी अनिःसृत कहते हैं। जैसे- मुख को देखकर चन्द्रमा का ज्ञान होना । ( ८ ) निःसृत : प्रकट पदार्थ को निःसृत कहते हैं। जैसे सामने खड़ा हुआ हस्ती । ( ६ ) अनुक्त जो पदार्थ अभिप्राय से समझा जाय उसे अनुक्त कहते हैं जैसे - मुँह की सूरत तथा हाथ आदि के इशारे से प्यासे मनुष्य का ज्ञान । (१०) उक्त : जो शब्द के द्वारा कहा जाय उसे उक्त कहते हैं । ( ११ ) ध्रुव : स्थिर पदार्थ को ध्रुव कहते हैं। जैसे पर्वत आदि । ( १२ ) अध्रुव : क्षणस्थायी पदार्थ को अध्रुव कहते हैं। जैसे-बिजली आदि । । (७४)

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