Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 81
________________ १५०. प्रश्न: अनक्षरात्मक और अक्षरात्मक श्रुतज्ञान का कितना प्रमाण है ? उत्तर : अनन्तभागवृद्धि, असंख्यात भागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, अनन्तगुणवृद्धि इन षट्स्थानपतित वृद्धि की अपेक्षा से पर्याय, पर्यायसमासरूप अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान के सबसे जघन्य स्थान से लेकर उत्कृष्ट स्थान पर्यन्त असंख्यात लोक प्रमाण भेद होते हैं। द्विरुपवर्गधारा में छठे वर्ग का जितना प्रमाण है अर्थात् एकट्टी प्रमाण उसमें से एक कम करने से जितना प्रमाण बाकी रहे, उतना ही अक्षरात्मक श्रुतज्ञान का प्रमाण है। १५१. प्रश्न विस्तार से श्रुतज्ञान के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : श्रुतज्ञान के बीस भेद होते हैं (१) पर्याय, ( २ ) पर्यायसमास, (३) अक्षर, (४) अक्षर-समास, (५) पद, (६) पदसमास, (७) संघात, (८) संघातसमास, (६) प्रतिपत्तिक, (१०) प्रतिपत्तिक समास, (११) अनुयोग, ( १२ ) अनुयोगसमास, (१३) प्राभृतप्राभृत, (१४) प्राभृतप्राभृतसमास, (१५) प्रामृत, (१६) प्राभृतसमास, (१७) वस्तु, (१८) वस्तुसमास, (१८) पूर्व और ( २० ) पूर्वसमास । (19%)Page Navigation
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