Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 80
________________ व्यंजनावग्रह के ४ भेद ( चक्षु और मन को छोड़कर ४ इन्द्रियों की अपेक्षा ) और अर्थावग्रह के ( ६x४ ) = २४ भेद (पाँच इन्द्रियाँ और मन ये छह और अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा ) इस प्रकार उक्त बारह प्रकार के पदार्थों में २८ भेदों की प्रवृत्ति होती है तो २८x१२ = ३३६ मतिज्ञान के भेद होते हैं। १४६. प्रश्न: श्रुतज्ञान किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद होते हैं ? उत्तर : मतिज्ञान के द्वारा जाने हुए पदार्थ का अवलम्बन लेकर उससे भिन्न पदार्थ के ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं। मतिज्ञानपूर्वक ही श्रुतज्ञान होता है। श्रुतज्ञान के दो भेद हैं- (१) अक्षरात्मक और (२) अनक्षरात्मक | अक्षरात्मक अर्थात् शब्दजन्य श्रुतज्ञान मुख्य है, क्योंकि उपदेश शास्त्राध्ययन, ध्यान आदि की अपेक्षा मोक्षमार्ग में तथा लेनदेन आदि समस्त लोक व्यवहार में शब्द और तज्जन्य बोध की मुख्यता है। अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक सभी जीवों के पाया जाता है, परन्तु यह लोक व्यवहार में और मोक्षमार्ग में उपयोगी नहीं है। (५) 4Page Navigation
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