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१४७. प्रश्न : मतिज्ञान के कितने भेद हैं ? उनका स्वरूप क्या
उत्तर : मतिज्ञान के चार भेद हैं. १. अवग्रह : पदार्थ और इन्द्रियों
का योग्य क्षेत्र में अवस्था नरूप सम्बन्ध होने पर सामान्य अवलोकन रूप दर्शन होता है और इसके अनन्तर विशेष आकार आदिक को ग्रहण करने वाला अवग्रह ज्ञान होता है। जैसे 'यह मनुष्य है।' अवग्रह के दो भेद हैं- . (अ) व्यंजनावग्रह : इन्द्रियों से प्राप्त-संबद्ध और अव्यक्त अर्थ को व्यंजन कहते हैं अर्थात् इन्द्रियों से सम्बद्ध होने पर भी जब तक प्रकट न होवे, उसे व्यंजन कहते हैं और इनके ज्ञान को व्यंजनावग्रह कहते हैं। यह ज्ञान चक्षुइन्द्रिय और मन को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों से होता है। जैसे श्रोत्रादिक के द्वारा प्रथम शब्दादिक के अव्यक्त ग्रहण को व्यंजनावग्रह कहते हैं। (आ) अर्थावग्रह : जो अप्राप्तअसम्बद्ध अर्थ के विषय में होता है उसे अर्थावग्रह कहते हैं, जो व्यंजनावग्रह के बाद होता है- जैसे श्रोत्रादिक के द्वारा शब्दादिक को प्रकट रूप से ग्रहण करना। यह ज्ञान पाँचों इन्द्रियों और मन से होता है।
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