Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 76
________________ : वेदों का उदय नवम् गुणस्थान के सवेद भाग तक रहता है । ग्यारहवें गुणस्थान से कषायरहित अवस्था है । १४४. प्रश्न ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके द्वारा जीव त्रिकालविषयक द्रव्य, गुण और उनकी अनेक प्रकार की पर्यायों को जाने उसे ज्ञान कहते हैं। १४५. प्रश्न ज्ञान के कितने भेद हैं ? उत्तर : ज्ञान के पाँच भेद हैं- (१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मन:पर्ययज्ञान और (५) केवलज्ञान । मति और श्रुतज्ञान परोक्षज्ञान हैं, अवधि और मन:पर्यय ज्ञान देशप्रत्यक्ष हैं तथा केवलज्ञान सकलप्रत्यक्ष है। मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यय ये चार ज्ञान क्षायोपशमिक ज्ञान हैं और केवलज्ञान क्षायिक ज्ञान है । १४६. प्रश्न : मतिज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : इन्द्रिय और मन की सहायता से अभिमुख ( योग्य क्षेत्र में अवस्थित ) और नियत ( अपनी-अपनी इन्द्रिय का नियत विषय, जैसे चक्षु का रूप ) पदार्थ का जो ज्ञान होता है, उसे आभिनिबोधिक अर्थात् मतिज्ञान कहते हैं । (199)

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