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ऋद्धिधारक मुनि के होता है। अनिस्सरण तैजस समस्त
संसारियों के होता है। १२६. प्रश्न : कर्म और नौकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : औदारिक, वैक्रियिक, आहारक और तैनस नामकर्म के उदय से
होने वाले चार शरीरों को नौकर्म कहते हैं। कार्माण शरीर नामकर्म के उदय से होने वाले ज्ञानावरणादिक आठ कर्मों के समूह को
कार्माण शरीर अर्थात् कर्म कहते हैं। १२७. प्रश्न : विनसोपचय किसे कहते हैं ? उत्तर : सम्पूर्ण आत्मप्रदेशों के साथ जो कर्म और नोकर्म बँधे हैं,
उन कर्म और नोकर्म के प्रत्येक परमाणु के साथ जीवराशि से अनन्तानन्तगुणे विनसोपचयरूप परमाणु भी सम्बद्ध हैं, जो कर्मरूप या नोकर्मरूप तो नहीं हैं, किन्तु कर्मरूप या नोकर्मरूप होने के लिए उम्मीदवार हैं, उन परमाणुओं को
विससोपचय कहते हैं। १२८. प्रश्न : औदारिकादि शरीरों का उत्कृष्ट संचप कहाँ होता है ? उत्तर : औदारिक शरीर का उत्कृष्ट संचय तीन पल्य की स्थिति
वाले देवकुरु और उत्तरकुरु में उत्पन्न मनुष्य तथा तिर्यच के आयु के अन्तिम और उपान्त्य समय में होता है। वैक्रियिक शरीर का उत्कृष्ट संचय बाइस सागर की आयु