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अर्थात् द्रव्यद कुछ होता है और भाववेद कुछ होता है। फुरुषवेद की बाधा तृण की आग के समान, स्त्री की बाधा कारीष (कंडे) की आग के समान और नसकवेद की बाधा ईट पकाने के आँवाँ
की आग के समान होती है। १३७. प्रश्न : वैद का सद्भाव कहाँ तक रहता है ? उत्तर : द्रव्यवेद की अपेक्षा स्त्रीवेद और नपुंसकवेद का सद्भाव
पाँचवें गुणस्थान तक तथा पुरुषवेद का सद्भाव चौदहवें गुणस्थान तक होता है। भाववेद की अपेक्षा तीनों वेदों का सद्भाव नवम् गुणस्थान के पूर्वार्थ तक रहता है। इसके
आगे के जीव वेदरहित होते हैं। १३८. प्रश्न : कषाय किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : जो आत्मा के सम्यक्त्वादि गुणों का घात करे, उसे कषाय
कहते हैं। अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोम, प्रत्याख्यानावरण, क्रोध-मान-माया-लोभ, संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ और हास्य-रति-अरति-शोक-भय-जुगुप्सा-स्त्रीवेद-पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद, ये कषाय के २५ भेद हैं। उदयस्थानों की
अपेक्षा कषाय के असंख्यात लोकप्रमाण भेद भी हैं। १. जिस जीव के जिस-किसी विवक्षित पर्याय में जो भाववेद प्राप्त हुआ है, वही भाववेद जीवन भर तक रहता है, बदलता नहीं है। धवला १/३४
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