Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 73
________________ १३६. प्रश्न: अनानुबन्धी कषाय किल्ले कहते हैं ? उत्तर : अनन्त संसार का कारण होने से मिथ्यात्व को अनन्त कहते हैं, इस अनन्त के साथ जिसका अनुबन्ध हो अर्थात् जो आत्मा के सम्यक्त्व गुण का घात करे उसे अनन्तानुबन्धी कषाय कहते हैं ? १ १४०. प्रश्न: अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन कषाय किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कषाय एकदेशचारित्र को घाते उसे अप्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं। जो कषाय सकल - चारित्र को घाते उसे प्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं। जो कषाय यथाख्यात चारित्र को घाते उसे संज्वलन कषाय कहते हैं । १. अनन्तानुबन्धी को सम्यक्त्व के साथ-साथ चारित्र का भी घातक कहा है ( धवल १/१६४, पंचाध्यायी उत्तरार्ध ११४०) वह भी ठीक ही है। बात यह है कि अनन्तानुबन्धी कषाय का कार्य अप्रत्याख्यानावरणादि कषायों का अनन्त प्रवाह बनाये रखना है। वह (अनन्तानुबन्धी) स्वयं किसी चारित्र को नहीं पाती। (धवल पु. ६ पृ. ४२ ) | चारित्र में अनन्तानुबन्धी चतुष्क का व्यापार निष्फल भी नहीं है, क्योंकि चारित्र की घातक अप्रत्याख्यानावरणादि के अनन्त उदय रूप प्रवाह के कारणभूत अनन्तानुबन्धी कषाय के निष्फलत्व का विरोध है ( धवल ६ / ४३); इस प्रकार अनन्तानुबन्धी की द्विस्वभावता सिद्ध होती है। (६८)

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