Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 70
________________ घट कहना क्योंकि कमण्डलु घट का काम देता है, इसलिए कथंचित् सत्य है और घटाकार नहीं है, इसलिए कथंचित असत्य है। जो दोनों ही ज्ञान का विषय नहीं होता है ऐसे पदार्थ को अनुभय कहते हैं, जैसे सामान्य रूप से यह प्रतिभास होना कि 'यह कुछ है' । यहाँ पर सत्य-असत्य का कुछ भी निर्णय नहीं हो सकता, इसलिए अनुभय है। १३५. प्रश्न : अनुभयवचन के कितने भेद हैं ? उत्तर : अनुभयवचन के नौ भेद हैं- (9) आमन्त्रणी- हे देवदत्त! यहाँ आओ, (२) आज्ञापनी- यह काम करो, (३) याचनीयह मुझको दो, (४) आच्छनी- यह क्या है ? (५) प्रज्ञापनी- मैं क्या करूँ इस तरह के सूचना वाक्य, (६) प्रत्याख्यानी- इसे छोड़ता हूँ, (७) संशयवचनी- यह बलाका है अथवा पताका, (८) इच्छानुलोम्नी- मुझे भी ऐसा ही होना चाहिए, ऐसी इच्छा प्रकट करने वाले वचन, (६) अनक्षरात्मक- हीन्द्रियादिक असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों की भाषा अनक्षरात्मक होती है। ये नौ प्रकार के वचन सुनने से व्यक्त और अव्यक्त दोनों ही अंशों का बोध होता है, क्योंकि सामान्य अंश के व्यक्त होने से इन्हें असत्य भी नहीं कह सकते और विशेष अंश के व्यक्त न

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