Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 69
________________ १३२. प्रश्न : उत्कर्षण किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्मप्रदेशों की स्थिति और अनुभाग की वृद्धि को उत्कर्षण कहते हैं। १३३. प्रश्न : कार्माण काययोग किस-किस गुणस्थान में होता है ? उत्तर : विग्रहगति की अपेक्षा कार्माण काययोग पहले, दूसरे और चौथे गुणस्थान में होता है तथा केवली समुद्घात की अपेक्षा कार्माण काययोग प्रतर और लोकपूरण अवस्था में होता है। १३४. प्रश्न : वचनयोग और मनोयोग के चार भेदों का स्वरूप क्या है ? उत्तर : पदार्थ को कहने या विचारने के लिए जीव की सत्य, . असत्य, उभय और अनुभय रूप चार प्रकार से बचन और मन की जो प्रवृत्ति होती है, उसे क्रम से सत्य वचनयोग तथा सत्य मनोयोग आदि कहते हैं। सम्यग्ज्ञान के विषयभूत पदार्थ को सत्य कहते हैं, जैसे 'यह जल है'। मिथ्याज्ञान के विषयभूत पदार्थ को असत्य कहते हैं, जैसे 'मृगमरीचिका' को जल कहना। दोनों के विषयभूत पदार्थ को उभय कहते हैं, जैसे 'कमण्डलु कोPage Navigation
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