Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 65
________________ आत्मप्रदेशों का जो परिस्पन्दन होता है, उसे कार्माण काययोग कहते हैं। यह योग एक, दो अथवा तीन समय तक होता है। ११६. प्रश्न: शरीर के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : शरीर के पाँच मे होते हैं- (१) और (-) वैकिमिक ( ३ ) आहारक ( ४ ) तैजस और (५) कार्माण । १२०. प्रश्न : औदारिक शरीर किसे कहते हैं ? उत्तर : गर्भ और सम्मूर्च्छन जन्म से जिसकी उत्पत्ति होती हैं ऐसे मनुष्य और तिर्यंचों के शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं । १२१. प्रश्न: वैक्रियिक शरीर किसे कहते हैं ? उत्तर : उपपाद जन्म से जिसकी उत्पत्ति होती है, ऐसे देव और नारकियों के शरीर को वैक्रियिक शरीर कहते हैं। १२२. प्रश्न : आहारक शरीर किसे कहते हैं ? उत्तर : छठे गुणस्थानवर्ती मुनि के तपश्चरण के निमित्त से होने वाली आहारक ऋद्धि के फलस्वरूप तीर्थंकरों के दीक्षा कल्याणक आदि एवं जिन जिनगृह, चैत्य चैत्यालयों की वन्दना के लिए अर्थात् असंयम का परिहार करने के लिए } (६०)

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