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अन्तर्मुहूर्त में जब तक आहारक शरीर पर्याप्त नहीं होता है तब तक आदारिक शरीर और आहारक शरीर के निमित्त से आत्मप्रदेशों में जो परिस्पन्दन होता है, उसे आहारकमिश्र काययोग कहते हैं।
१६. प्रश्न : आहाकाययोग किले कहते हैं ?
उत्तर : छठे गुणस्थानवर्ती मुनि के मस्तक से जो श्वेत रंग का
पुतला निकलता है वह केवली के पास जाकर सूक्ष्म पदार्थों का आहरण-ग्रहण करता है, इसलिए इस आहारक शरीर के द्वारा आत्मप्रदेशों में जो परिस्पन्दन होता है,
उसे आहारक काययोग कहते हैं। ११७. प्रश्न : आहारक काययोगी और आहारकमिश्र काययोगी
जीवों का कितना प्रमाण है ? उत्तर : एक समय में आहारक काययोग वाले जीव अधिक से
अधिक ५४ होते हैं और आहारकमिश्न काययोग वाले
जीव अधिक से अधिक २७ होते हैं। ११८. प्रश्न : कार्माण काययोग किसे कहते हैं ? उत्तर : जब यह जीव मरण कर नया शरीर प्राप्त करने के लिए
विग्रहाति में जाता है तब कार्माण शरीर के निमित्त से