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यचनयोग के चार भेद हैं- (१) सत्य वचनयोग (२) असत्य वचनयोग (३) उभय वचनयोग और (४) अनुमय वचनयोग। मनोयोग के चार भेद हैं- (१) सत्य मनोयोग (२) असत्य मनोयोग (३) उभय मनोयोग और (४) अनुभय मनोयोग।
इस प्रकार सब मिलाकर योग के १५ भेद हैं। १११. प्रश्न : औदारिकमिश्र काययोग किसे कहते हैं ? उत्तर : विग्रहगति के बाद मनुष्य अथवा तिथंच गति में जब तक
शरीरपर्याप्ति पूर्ण नहीं होती है तब तक अर्थात् अपर्याप्त अवस्था में इस जीव के कार्मण शरीर और औदारिक शरीर के निमित्त से आत्मप्रदेशों का जो परिस्पन्दन होता
है, उसे औदारिकमिश्र काययोग कहते हैं। ११२. प्रश्न : औदारिक काययोग किसे कहते हैं ? उत्तर : निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था के अन्तर्मुहूर्त बाद पर्याप्त हो जाने
पर औदारिक शरीर के निमित्त से जो आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन होता है उसे औदारिक काययोग कहते हैं। मनुष्य और तिर्यंच को पूरे जीवन भर औदारिक काययोग
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