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८४. प्रश्न : नरकगति का स्वरूप क्या है ? उत्तर :जो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में स्वयं तथा परस्पर प्रीति को
प्राप्त नहीं होते, उनको नारक (नारकी) कहते हैं और उनकी गति को नारक-गति कहते हैं। नारकियों का निवास इस पृथिवी के नीचे सातों पृथिवियों में है, नारकी निरन्तर ही स्वाभाविक, शारीरिक, मानसिक, आगन्तुक तथा क्षेत्र जन्य इन पाँच प्रकार के दुःखों से दुःखी रहते हैं। बहुत आरम्भ, बहुत परिग्रह तथा रौद्र ध्यान के कारण जीव नरकायु का बन्ध कर इन पृथिवियों में उत्पन्न होते
१५. प्रश्न : तियचगति का स्वरूप क्या है ? उत्तर :जो मन-वचन-काय की कुटिलता से युक्त हैं, जिनकी
आहारादि विषयक संज्ञाएँ अत्यन्त स्पष्ट हैं, जो निकृष्ट अज्ञानी हैं और जिनमें अत्यन्त पाप का बाहुल्य पाया जाता है, उनको तिर्यंच कहते हैं और उनकी गति को निर्यचगति कहते हैं। इनके एकेन्द्रियादि पाँच भेद हैं। एकेन्द्रिय जीवों का समस्त लोक में निवास है, बसनाली में त्रस जीवों का निवास है, तथा उपपाद, मारणान्तिक समुद्घात और केवली-समुद्घात की अपेक्षा समस्त लोक