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छिन्न हो जाने पर जो फिर से उत्पन्न नहीं होती हैं और जिनकी स्कन्ध की छाल पतली होती है, उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं। अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति अपनी उत्पत्ति के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त
सप्रतिष्ठित प्रत्येक ही रहती है। १०२. प्रश्न : एक निगोद शरीर में द्रव्य की अपेक्षा जीदों का
प्रमाण कितना है ? उत्तर : समस्त सिद्धराशि का और सम्पूर्ण अतीत काल के समयों
का जितना प्रमाण है, द्रव्य की अपेक्षा उनसे अनन्तगुणे
जीव एक निगोद शरीर में रहते हैं। १०३. प्रश्न : नित्य निगोद किसे कहते है ? उत्तर : जो आज तक निगोद पर्याय से नहीं निकले हैं, उन्हें नित्य
निगोद कहते हैं। नित्य-निगोदिया जीवों का काल अनादि अनन्त और अनादि सान्त होता है, परन्तु इतर निगोदिया
जीवों का काल सादि सान्त और सादि अनन्त होता है। १०४. प्रश्न : इतर निगोद किसे कहते है ? उत्तर : जो निगोद से निकलकर तथा अन्य पर्यायों में भ्रमण कर
पुनः निगोद में ही उत्पन्न होते हैं, उन्हें इतर निगोद कहते हैं।