Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 53
________________ ६०. प्रश्न: इन्द्रिय मार्गणा किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं और उनका स्वरूप क्या है ? | उत्तर : एकेन्द्रियादि जाति नामकर्म के उदय से जीव की जो एकेन्द्रिय आदि अवस्था होती है, उसे इन्द्रिय मार्गणा . कहते हैं । इन्द्र के सदृश अपने-अपने विषय में स्वतन्त्र होने से इन्द्रिय कहते हैं। या छद्मस्थ जीव जिनके माध्यम से पदार्थों को जानते हैं, उन्हें इन्द्रिय कहते हैं । इन्द्रिय के दो भेद हैं- (१) भावेन्द्रिय ( २ ) द्रव्येन्द्रिय । लब्धि और उपयोग को भावेन्द्रिय कहते हैं। मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली अर्थग्रहण की शक्तिरूप विशुद्धि को लब्धि और उस विशुद्धि से अर्थ को ग्रहण करने रूप जो व्यापार होता है, उसको उपयोग कहते हैं । निवृत्ति और उपकरण को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। जीवविपाकी जाति नामकर्म के उदय के साथ-साथ शरीर नामकर्म के उदय से तत्तत् इन्द्रिय के आकार में जो आत्मप्रदेशों तथा आत्मसम्बद्ध शरीर- प्रदेशों की रचना होती है उसको निर्वृत्ति कहते हैं । निर्वृत्ति आदि की रक्षा में सहायक अवयव को उपकरण कहते हैं। (४८)

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