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६१.
प्रश्न : शरीर पर्याप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : तिल की खली के समान उस खलभाग को हड्डी आदि कठिन अवयवरूप से और तिल के तेल के समान रसभाग को रस, रुधिर, वसा, चीर्य आदि द्रव अवयव सहित औदारिक आदि तीन शरीर रूप से परिणमन करने वाली शक्ति से युक्त पुद्गल स्कन्धों की प्राप्ति को शरीरपर्याप्ति कहते हैं। यह शरीर पर्याप्ति आहारपर्याप्ति के पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्त में पूर्ण होती है ।
६२. प्रश्न इन्द्रिय पर्याप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : योग्य देश में स्थित रूपादि से युक्त पदार्थों के ग्रहण करने रूप शक्ति की उत्पत्ति के निमित्तभूत पुद्गलप्रचय की प्राप्ति को इन्द्रियपर्याप्ति कहते हैं। यह इन्द्रिय पर्याप्ति भी शरीर पर्याप्ति के पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्त में पूर्ण होती है ।
६३. प्रश्न : श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर : उच्छ्वास और निःश्वासरूप शक्ति की पूर्णता के निमित्तभूत पुद्गल प्रचय की प्राप्ति को श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति कहते हैं। यह पर्याप्ति इन्द्रिय पर्याप्ति के अनन्तर एक अन्तर्मुहूर्त में पूर्ण होती है।
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