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और समुद्घात की अपेक्षा सयोगकेवली जिन के होती है। पर्याप्त अवस्था सभी गुणस्थानों में होती है।
६६. केवली भगवान का शरीर पूर्ण है और उनके पर्याप्त नामर्कम का उदय भी है तथा काय-योग भी है तब उनको अपर्याप्त क्यों कहा ?
उत्तर : केवली भगवान के काययोग आदि सभी विद्यमान हैं तथापि उनके समुद्घात की कपाट प्रतर और लोकपूरण तीनों ही अवस्थाओं में योग पूर्ण नहीं होने से आगम में गौणता से उनको अपर्याप्त कहा है।
७०.
प्राण किसे कहते हैं ? प्राण के कितने भेद हैं ?
उत्तर : जिनके संयोग से जीव जीवित और वियोग से मृत कहलाता है, उन्हें प्राण कहते हैं । द्रव्यप्राण और भावप्राण के भेद से प्राण के दो भेद होते हैं। आत्मा के ज्ञान दर्शन आदि गुणों को भावप्राण और इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास को द्रव्यप्राण कहते हैं ।
५ इन्द्रिय, ३ बल, आयु और श्वासोच्छ्वास; इस प्रकार द्रव्यप्राण के १० भेद होते हैं ।
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