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अथवा कुशील पुरुषों की संगति से जीव के हृदय में जो
कामवासना उत्पन्न होती है, उसे मैथुन संज्ञा कहते हैं। ७६. प्रश्न : परिग्रह संज्ञा किसे कहते हैं ? उत्तर : अन्तरंग में लोभ कषाय की उदीरणा होने से और बाह्य
में भोगोपभोग के साधनभूत पदार्थों को देखने से अथवा पहले के मुक्त पदार्थों का स्मरण या उनकी कथा सुनने से और ममत्व परिणामों से जीव के हृदय में जो परिग्रह-अर्जन-रक्षण संग्रह की बुद्धि होती है, उसे परिग्रह
संज्ञा कहते हैं। ७७. कौन-कौन सी संज्ञा किस-किस गुणस्थान तक होती है ? उत्तर :आहार संज्ञा छठे गुणस्थान तक, भय संज्ञा आठवें गुणस्थान
तक, मैथुन संज्ञा नवम् गुणस्थान के सवेद भाग तक और परिग्रह संज्ञा दसवें गुणस्थान तक होती है। सातवें आदि गुणस्थानों में जो भय आदि तीन संज्ञाएँ बतलायी हैं, वे मात्र अन्तरंग उन-उन कमों के उदय की अपेक्षा बतलायी
हैं, प्रवृत्ति की अपेक्षा नहीं। ७८. प्रश्न : मार्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : जिनमें अथवा जिनके द्वारा जीवों की खोज की जावे, उन्हें
मार्गणा कहते हैं।