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पर्याप्त नामकर्म के उदय से युक्त जिनकी जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती है तब तक उन्हें नित्यपर्याप्तक कहते हैं। ये जीव पर्याप्त नामकर्म के उदय से पर्याप्तक ही होते हैं, परन्तु निर्वृतिरचना की अपेक्षा कुछ काल तक निर्घत्यपर्याप्तक कहे जाते हैं।
अपर्याप्त नाम कर्म के उदय से युक्त जिनकी एक भी पर्याप्ति न पुर्ण हुई है और न भागे पुर्ण होगी, उन्हें लब्ध्यपर्याप्तक जीव कहते हैं। ऐसे जीवों का शीघ्र ही मरण हो जाता है, इनकी आयु श्वास के अठारहवें भाग
मात्र होती है। ६७. प्रश्न : लब्ध्यपर्याप्तक जीव एक अन्तर्मुहूर्त में अधिक से
अधिक कितने मय धारण कर सकता है ? उत्तर : एक लब्धपर्याप्तक जीव यदि निरन्तर जन्म-मरण करे तो
एक अन्तर्मुहूर्त में अधिक से अधिक ६६३३६ बार जन्म
और उतने ही बार मरण कर सकता है। इन भवों में प्रत्येक भव का काल क्षुद्रभव प्रमाण अर्थात् एक श्वास का अठारहवाँ भाग है, फलतः ६६३३६ भवों के श्वासों का प्रमाण ३६८५ में होता है। इतने काल में पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और साधारण
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