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पसीना आदि में उत्पन्न होते हैं। सम्पूर्छन जन्म वाले
मनुष्य अपर्याप्त ही होते हैं। ५२. प्रश्न : किस जन्म की कौन-सी गुणयोनि होती है ? उत्तर : उपपाद जन्म की अचित्त, शीत, उष्ण और संवृत योनियाँ
होती हैं। गभं जन्म की सचित्तचित्त, शीत, उध्य, शीतोष्ण
और संवृत-विवृत योनियाँ होती हैं। सम्पूर्छन जन्म की सचित्त, अचित्त, सचित्ताचित्त, शीत, उष्ण, शीतोष्ण, एकेन्द्रिय की संवृत, विकलेन्द्रिय की
विवृत और पंचेन्द्रिय जीवों की विवृत योनि होती है। ५३. प्रश्न : विस्तार से गुणो योनि के कितने भेद हैं ? उत्तर : विस्तार से गुणयोनि के चौरासी लाख भेद हैं; जो इस
प्रकार है-नित्य निगोद, इतर निगोद एवं पृथिवी-जल-अग्नि
और वायुकायिक इन छह प्रकार के जीवों में से प्रत्येक की सात-सात लाख, प्रत्येक वनस्पति की दस लाख, विकलत्रयों में प्रत्येक की दो-दो लाख, देव-नारकी और पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में प्रत्येक की चार-चार लाख और मनुष्यों की चौदह लाख इस तरह सब मिलाकर गुणयोनि के चौरासी लाख भेद होते हैं।