________________
अपेक्षा दो भेद होते हैं। भोगभूमिज और कुभोगभूमिज मनुष्य के पर्याप्त और निर्वृत्यपर्याप्त की अपेक्षा दो-दो भेद होते हैं। देव और नारकियों के पर्याप्त और निर्वृत्यपर्याप्त की अपेक्षा दो-दो भेद होते हैं। इस तरह तिर्यंच के (४२ + ६ + १२ + १८ + ४) = ८५ भेद, मनुष्य के (३ + २ + ४) = ६ मेद, देव के २ भेद
और नारकी के २ भेद, ये सब मिलाकर जीवसमास के
(८५ + ६ + ४) = ६८ भेद होते हैं। ४५. प्रश्न : योनि किसे कहते हैं तथा इसके कितने भेद होते
उत्तर :जीव के उत्पत्ति-स्थान को योनि कहते हैं। योनि के
२ भेद हैं-१. आकारयोनि और २. गुणयोनि । आकारयोनि के मनुष्य की अपेक्षा ३ भेद हैं - १. शंखावर्त योनि, २. कूर्मोन्नत योनि और ३. वंशपत्र योनि । गुण योनि के ६ भेद हैं-१,सचित्त, २. अचित्त, ३. सचित्ताचित्त, ४. शीत, ५. उष्ण, ६ शीतोष्ण, ७. संवृत ८ विवृत और ६. संवृतविवृत।
(२६)