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कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तियचों के संज्ञी और असंझी की अपेक्षा दो भेद हैं। इन दोनों के जलचर, थलचर और नभचर की अपेक्षा तीन-तीन भेद होने से ६ भेद होते हैं। ये छह प्रकार के जीव गर्भ, जन्म और सम्मूर्छन जन्म की अपेक्षा दो प्रकार के होते हैं। गर्भ जन्म वाले छह प्रकार के जीवों के पर्याप्त और नित्यपर्याप्त की अपेक्षा दो-दो भेद हैं अतः (६x२) = १२ भेद होते हैं। सम्पूर्छन जन्म वाले छह प्रकार के जीवों के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त की अपेक्षा तीन-तीन भेद हैं, अतः (६४३) = १८ भेद होते हैं। इस प्रकार कर्मभूमिज तिर्यच के (१२ + १८)- ३० भेद होते हैं। भोगभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यचों के थलचर और नभचर, ये दो भेद होते हैं। इनके पर्याप्त और नित्यपर्याप्त की अपेक्षा दो-दो भेद हैं, अतः (२x२) = ४ भेद होते हैं। आर्यखण्ड के मनुष्य के पर्याप्त, निवृत्यपर्याप्त और लब्थ्यपर्याप्त की अपेक्षा तीन भेद होते हैं। म्लेच्छखण्ड के मनुष्य के पर्याप्त और निर्वृत्यपर्याप्त की
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