Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 14
________________ और (४) अनुभाग-खण्डन। ये चारों ही कार्य पूर्वबद्ध कों में होते हैं। इन परिणाम के बागीच मोहनीय कर्म की २१ प्रकृतियों का क्षपण अथवा उपशमन करने के लिए उद्यत होते हैं। २०. प्रश्न : गुणश्रेणी निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर : गुणित रूप से उत्तरोत्तर समयों में कर्म-परमाणुओं का झरना (निर्जीर्ण होना) गुणश्रेणी निर्जरा है जैसे किसी जीव के पहले समय में १० कर्म-परमाणु उदय में आये, फिर दूसरे समय में १० गुणे असंख्यात परमाणु उदय में आये। तीसरे समय में १० गुणे असंख्यात गुणे असंख्यात परमाणु उदय में आये। चौथे समय में तीसरे समय से भी असंख्यात गुणे परमाणु उदय में आये। इस तरह लगातार असंख्यात गुणे-असंख्यात गुणे कर्म परमाणुओं का उदय में आना गुणश्रेणी निर्जरा है। माना कि असंख्यात-२ हो तथा प्रथम समय में उदीयमान परमाणु १० हों तो प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि समयों में उदयागत परमाणुओं की संख्या ऐसी होगी- १०, २०,Page Navigation
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