Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 12
________________ । १४. प्रश्न : अप्रमत्तविरत गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : जब संज्वलन और नोकषाय का मन्द उदय होता है तब सकलसंयम से युक्त मुनि के प्रमाद-रूप परिणामों का अभाव हो जाता है, इसलिए इसे अप्रमत्तविरत गणस्थान कहते हैं। १५. प्रश्न : अप्रमत्तविरत गुणस्थान के कितने भेद हैं ? उत्तर : अप्रमतदिन गुणरधान के दो मेन हैं.. १ सम्मान अप्रमत्तविरत और २. सातिशय अप्रमत्तविरत। जो सातवें गुणस्थान से छठे में और छठे गुणस्थान से सातवें में उतरते-चढ़ते रहते हैं उनको स्वस्थान अग्रमत्तविरत कहते . हैं। जो उपशम अथवा क्षपक श्रेणी के सम्मुख होकर अधःप्रवृत्तकरणरूप परिणाम करते हैं, उनको सातिशय अप्रमत्तविरत कहते हैं। १६. प्रश्न : अधःप्रवृत्तकरण किसे कहते हैं ? उत्तर : जहाँ सम-समयवर्ती जीवों के परिणाम भिन्न-समयवर्ती जीवों के परिणामों से समान और असमान दोनों प्रकार के होते हैं उसे अधःप्रवृत्तकरण कहते हैं। इन अधःप्रवृत्तकरण

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