Book Title: Karananuyoga Part 1 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 11
________________ सूत्र के आश्रय से आचार्यादि के द्वारा आगम दिखाकर समीचीन पदार्थ के समझाने पर भी यदि वह जीव में को न तोड़े तो ह अज्ञान से किये हुए अत जीव उसी काल से मिध्यादृष्टि कहा जाता है। १२. प्रश्न : देशविरत गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : अप्रत्याख्यानावरण कषाय के अनुदय से जहाँ इस जीव के हिंसा आदि पाँच पापों के एकदेश- त्यागरूप परिणाम होते में हैं, उसे देशविरत गुणस्थान कहते हैं । इस गुणस्थान सहिंसा की अपेक्षा विरतरूप भाव और स्थावर हिंसा के त्याग की अपेक्षा अविरत रूप भाव पाये जाते हैं, इसलिये इस गुणस्थान को विरताविरत अथवा संयमासंयम भी कहते हैं । १३. प्रश्न : प्रमत्तविरत गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रत्याख्यानावरण कषाय के अनुदय से जहाँ सम्पूर्ण संयम तो हो चुका है, किन्तु संज्वलन और नोकषाय का उदय रहने से संयम में मल उत्पन्न करने वाला प्रमाद रूप परिणाम होता है, अतएव इस गुणस्थान को प्रमत्तविरत गुणस्थान कहते हैं। (६) 2.Page Navigation
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