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३१. प्रश्न : अयोगकेवली गुणस्थान किसे कहते है ? उत्तर : जहाँ मन, बचन और काय इन तीनों योगों का सर्वथा
अभाव हो जाता है उसे अयोगकेवली गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान का काल ' अ इ उ ऋ तृ' इन पाँच लघु अक्षरों के उच्चारण काल के बराबर है। इसके उपान्त्य समय में ७२ और अन्त्य समय में १३ प्रकृतियों का क्षय होता है। कर्मबन्ध से मुक्त होते ही आत्मा के प्रदेश एक
समय में ऋजुगति से सिद्धालय में पहुँच जाते हैं। ३२. प्रश्न : सिद्धालय कहाँ है ? उत्तर : लोक के अन्त में तनुवातवलय के अन्तिम ५२५ धनुष
प्रमाण क्षेत्र में सिद्धालय है अर्थात् सिद्ध परमेष्ठी का वहीं निवास होता है। सिद्धात्मा के प्रदेश ऊर्ध्वगमन-स्वभाव के कारण यद्यपि ऊपर की ओर जाते हैं परन्तु आगे के धर्मास्तिकाय का अभाव होने से लोकान्त में ही ठहर जाते
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हैं।
३३. प्रश्न : मोहनीय कर्म की अपेक्षा प्रत्येक गुणस्थान में
कौन-कौन से भाय पाये जाते हैं ? ___ उत्तर : दर्शनमोहनीय कर्म की अपेक्षा प्रथम गुणस्थान में औदयिक
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