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निर्मल परिणामों को नसालोह गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान का धारक जीव अन्तर्मुहूर्त के भीतर आयुक्षय अथवा (गुणस्थान के) काल क्षय के कारण नियम से नीचे
के गुणस्थान में पतन करता है। २६. प्रश्न : क्षीणमोह गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने से जहाँ आत्मा के
परिणाम स्फटिकमणि के स्वच्छ पात्र में रखे हुए जल के
समान निर्मल होते हैं, उसे क्षीणमोह गुणस्थान कहते हैं। ३०. प्रश्न : सयोगकेवली गुणस्थान किसे कहते हैं ? उत्तर : जहाँ घातिया कर्मों की ४७, नामकर्म की १३ एवं आयुकर्म
की ३, इस प्रकार ६३ प्रकृतियों के क्षय से केवलज्ञान प्राप्त होता है तथा योगसहित प्रवृत्ति होती है, उसे सयोगकेवली गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में आत्मा अनन्त चतुष्टय एवं नव केवललब्धि से युक्त होता है। घातिकर्म का क्षय होने से वे जिन, जिनेन्द्र अथवा अरिहन्त कहलाते हैं। तीर्थकर अरहन्त के समवसरण की रचना होती है।
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