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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personalty and Achievements
सम्पादकीय
जैन जगत् के अद्वितीय विद्वान्, भाष्यकार, कविहृदय स्व. पं जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' की स्मृति में तिजारा (अलवर) में ई. सन् 1998 में एक विद्वत् संगोष्ठी पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में सम्पन्न हुई थी। संगोष्ठी का विषय था-"पं जुगलकिशोर मुख्तार व्यक्तित्व एव कृतित्व"। संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यो के विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों एवं महाविद्यालयों के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों ने भाग लिया और मुख्तार सा. के व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व के विभिन्न पक्षों पर शोध निबन्ध प्रस्तुत किये। उन्हीं शोध-निबन्धो को संकलित/सपादित करके "पण्डित जुगल किशोर मुख्तार 'युगवीर' व्यक्तित्व एव कृत्तित्व" के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
ग्रन्थ में प्रस्तुत सामग्री को तीन भागों में विभाजित किया गया है(1) संस्मरण एवं व्यक्तित्व, (2) कृतित्व : काव्य-समीक्षा और (3) कृत्तित्व : साहित्य-समीक्षा।
प्रथम भाग में दो संस्कृत कविताएँ एव ग्यारह निबन्ध हैं, मुख्तार सा के साथ सरसावा में लम्बे समय तक रहकर 'वीर सेवा मन्दिर' (समन्तभद्राश्रम) के अनुसन्धान कार्यों में सहयोग करने वाले वयोवृद्ध विद्वान् श्री कुन्दनलाल जैन का निबन्ध विविध प्रकार के ऐतिहासिक मशाले से ओत-प्रोत है। अन्य. निबन्धो का भी अपना वैशिष्ट्य है।
दूसरे भाग में मुख्तार साहब द्वारा सन् 1901 से 1956 के बीच धार्मिक, आध्यात्मिक एवं समसामयिक विषयों पर रची गई विभिन्न कविताओं पर समीक्षात्मक दृष्टि से प्रस्तुत दस आलेख है। युगवीर की "मेरी भावना" को जैन समाज का बच्चा-बच्चा गाता/गुनगुनाता है, उनकी लोकप्रियता इसी से स्पष्ट है। केवल "मेरी भावना" पर ही पाँच निबन्ध लिखे गये हैं। युगवीर